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Showing posts from October, 2017

निबंध - आत्मत्याग

बालकृष्ण भट्ट  आत्‍म-निर्भरता के समान आत्‍म-त्‍याग भी देश के कल्‍याण का प्रधान अंग है। हमारे देश में आत्‍मत्‍याग का बीज भी वैसा ही क्षीण हो गया है जैसा आत्‍म-निर्भरता का। अचरज है जहाँ के इतिहासों में दधिचि, शिवि, हरिश्‍चन्‍द्र, बलि, कर्ण इत्‍यादि महापुरुषों के अनेक उदाहरण से आत्‍म-त्‍याग की कैसी उत्‍कर्षता दिखाई गई है, जिन महात्‍माओं ने दूसरों के लिए अपने अमूल्‍य जीवन का भी कुछ मोल न समझा वहाँ के लोग अब कहाँ तक स्‍वार्थपरायण पाये जाते हैं कि जिसकी हद्द नहीं है। बहुधा बेटा भी बाप के मुकाबिले तथा बाप बेटा के मुकाबिले किसी बात में जरा अपना नुकसान नहीं बर्दाश्‍त किया चाहता। इस अंश में सीधे-सादे हमारे पुराने ढर्रे वाले फिर भी सराहना के लायक हैं जिनके शील संकोच से, कभी को धर्म के ख्‍याल से किसी न किसी रूप में आत्‍मत्‍याग की जड़ नहीं टूटी वरन् कुछ न कुछ इसकी वासना एक तरह पर फिसलती हुई चली जा रही है। नई तालीम तो आत्‍मत्‍याग के लिये मूलोच्‍छेदी कुठार हुई। हुआ चाहे जो इसके बानी-मुबानी है उनमें जब यहाँ तक स्‍वार्थपरता है कि स्‍वार्थ के पीछे अन्‍धे दया, सहानुभूति और न्‍याय को बहुत कम आदर...

अज्ञेय का रचना संसार

                             ए क घंटे में प्रभाकर जब अपने बड़े कोट के नीचे भरा हुआ 45 बोर का रिवाल्वर लगाकर, जेब में पड़े हुए गोलियों के बटुए को हाथ से छूकर, एक बार शीशे में अपना प...

अज्ञेय का रचना संसार

                 शरणदाता ''यह कभी हो ही नहीं सकता, देविन्दरलाल जी!'' रंफीकुद्दीन वकील की वाणी में आग्रह था, चेहरे पर आग्रह के साथ चिन्ता और व्यथा का भाव। उन्होंने फिर दुहराया, ''यह कभी नहीं हो सकता देविन्दरलाल जी!'' देविन्दरलाल ने उनके इस आग्रह को जैसे कबूलते हुए, पर अपनी लाचारी जताते हुए कहा, ''सब लोग चले गये। आपसे मुझे कोई डर नहीं बल्कि आपका तो सहारा है, लेकिन आप जानते हैं, जब एक बार लोगों को डर जकड़ लेता है और भगदड़ पड़ जाती है, तब फिजा ही कुछ और हो जाती है। हर कोई हर किसी को शुबहे की नंजर से देखता है, और खामखाह दुश्मन हो जाता है। आप तो मुहल्ले के सरवरा हैं, पर बाहर से आने-जाने वालों का क्या ठिकाण है? आप तो देख ही रहे हैं, कैसी-कैसी वारदातें हो रही हैं...'' रंफीकुद्दीन ने बात काटते हुए कहा, ''नहीं साहब, हमारी नाक कट जाएगी। कोई बात है भला कि आप घर-बार छोड़कर अपने ही शहर में पनाहगजीं हो जाएँ? हम तो आपको जाने न देंगे बल्कि जबरदस्ती रोक लेंगे। मैं तो इसे मेजारटी का फर्ज मानता हँ कि वह माइनारिटी की हिंफांजत करे और उन्हें घर छ...